ग्रामीण आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूह से जुड़ने पर जीजी बाई के जीवन में बदलाव आया, जिससे वे आत्मनिर्भर हो गई हैं।नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव विकासखंड के ग्राम भदौर की जीजी बाई के परिवार के लोगों का जीवन-यापन उनके पति की मजदूरी पर निर्भर रहता था। आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूह के बारे में जानकारी मिलने के बाद वे एकता स्व-सहायता समूह से जुड़ीं। समूह में 10 सदस्य भी बन गये। पहले जीजी बाई घर का काम-काज संभालती थीं पर समूह से जुड़ने के बाद महिलाओं के साथ बैठक में भी शामिल होने लगीं। उन्होंने छोटी-छोटी बचत करना शुरू की और बैंक से लोन लेने की प्रक्रिया समझी।
जीजी बाई ने बैंक से पहली बार 16 हजार रूपये का लोन लिया और सेन्टरिंग का काम शुरू कर दिया। घर में गाय, भैंस का दूध भी विक्रय किया जाने लगा। इन सबके बावजूद इससे होने वाली आमदनी नाकाफी थी। उन्होंने एक कदम और आगे बढ़ाकर अपने समूह की महिलाओं के साथ बैठक कर मालवाहक चार पहिया वाहन खरीदना तय किया। समूह की चार महिलाओं ने मिलकर इसके लिए बैंक से एक लाख रूपये का लोन लिया और इसी वाहन से सामान की ढुलाई का काम शुरू किया। अब वाहन से हर महीने 25 हजार रूपये तक की आमदनी हो रही है। जीजी बाई को अब अपने सभी कार्य के एवज में 15 से 17 हजार रूपये तक की प्रतिमाह आमदनी होने लगी है।
जीजी बाई का कहना है कि आजीविका मिशन के समूह से जुड़ने के बाद उन्हें अब किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती। समूह ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने में भरपूर मदद की है। इस कार्य में वे मध्यप्रदेश सरकार और आजीविका मिशन की मदद के लिए आभार प्रकट भी करती हैं।