प्रो. रमानाथ मिश्र डॉ.वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित
संस्कृति मंत्री सुश्री उषा ठाकुर की ओर से सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता प्रो. रमानाथ मिश्र को आज उनके लखनऊ स्थित निवास पर मध्यप्रदेश शासन के प्रतिष्ठित डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान वर्ष 2014-15 से नवाजा गया। ऑनलाइन हुए इस पुरस्कार समारोह में इंदौर से मंत्री सुश्री ठाकुर और भोपाल से प्रमुख सचिव संस्कृति श्री शिवशेखर शुक्ला ने शिरकत की। शासन की ओर से पुरातत्व अधिकारी डॉ. रमेश यादव ने प्रो. मिश्र को सम्मान स्वरूप 2 लाख रुपये की राशि और प्रशस्ति-पत्र भेंट किया।
सुश्री ठाकुर ने कहा कि कोविड के कारण भव्य आयोजन के स्थान पर हमें यह राष्ट्रीय सम्मान ऑनलाइन अर्पित करना पड़ा है। पुरातात्विक इतिहास किसी भी राष्ट्र की अस्मिता और आन-बान-शान होता है। आने वाली पीढ़ी के समक्ष इस तरह प्रेरणादायी स्वरूप में रखा जाना अत्यन्त आवश्यक है। उन्होंने आशा व्यक्त की प्रो. मिश्र का पुरातात्विक ज्ञान और मार्गदर्शन का लाभ मध्यप्रदेश को मिलता रहेगा।
प्रो. रमानाथ मिश्र ने मध्यप्रदेश की धरती को नमन करते हुए कहा कि वर्ष 1959 से उन्हें सागर में अध्यापन करने का जो अवसर मिला वह कला और पुरातत्व के कार्य में प्रेरणा स्त्रोत रहा। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में अभी भी विशाल मात्रा में पुरातात्विक धरोहर है जिसको उजागर करने के लिये गहन प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मैं मध्यप्रदेश की धरती को प्रणाम करता हूँ जिसने मेरे कार्य को पहचान दी।
डॉ. रमानाथ मिश्र ने बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विषय में स्नातकोत्तर उपाधि और सागर के डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से वर्ष 1968 में ‘यक्ष कल्ट एण्ड आइक्नोग्राफी’ पर पी.एचडी. की। उन्होंने डॉ.हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में 1959 से 1976 तक सहायक प्राध्यापक, ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय में वर्ष 1976 से 1985 तक रीडर और प्रोफेसर के रूप में सेवाएँ दी। प्रो. मिश्र वर्ष 1985-86 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सेवाऍं देने के बाद पुन: 1986 से 2001 तक जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे। इसके बाद उन्होंने इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी, राष्टपति निवास शिमला में फैलो के रूप में कार्य किया। प्रो. मिश्र के 108 शोध पत्र और 9 पुस्तकें प्रकाशित हैं। डॉ. मिश्र ने अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में विशेष व्याख्यान प्रस्तुत किये हैं। बिहार और उत्तरप्रदेश सरकार ने उनको पुस्तक भारतीय मूर्तिकला के लिये क्रमश: राष्ट्रीय सम्मान और अनुशंसा सम्मान प्रदान किया।
भारत सरकार द्वारा वर्ष 1975 में उन्हे डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान राज्य शासन द्वारा पुरासम्पदा के संरक्षण एवं पुरातात्विक संस्कृति के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर की उत्कृष्ट प्रतिभा को सम्मानित और प्रोत्साहित करने के लिये दिया जाता है। नीमच में जन्मे डॉ. वाकणकर ने 1957 में विश्व धरोहर स्मारक समूह भीम बैठका की खोज की थी। उन्होंने मनोटी, इन्द्रगढ़, कायथा, दंगवाड़ा, रूनिजा आदि पुरातत्वीय उत्खननों में भी अति महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1975 में उन्हे पद्मश्री से अलंकृत किया गया। भारतीय पुरातत्व परिषद् और इंडियन सोसायटी फॉर प्री एण्ड प्रोटोहिस्टारिक एण्ड क्वाटरनरी स्टडीज के आजीवन सदस्य डॉ. वाकणकर ने अमेरिका और यूरोप में व्याख्यानों के साथ शैलाश्रयों की चित्रकला पर आधारित प्रदर्शनियों का आयोजन किया। संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में उत्खनन निदेशक के पद पर रहे डॉ. वाकणकर ने भीम बैठका के शैल चित्रों को विश्व के मानचित्र पर रखा।