पितृपक्ष-आज से पितृपक्ष प्रारम्भ हो रहा है,हिन्दू संस्कृति में मृत्यु उपरांत अपने पूर्वजो को देव रूप में मान कर उनके लिए जलदान व पिंडदान दिया जाता है।
इन सोलह दिनों को महत्व इसलिए दिया जाता है कि यदि वर्षभर हम यदि किसी पित्र की तिथि पर कोई दान या स्मरण नही कर पाए तो कम से कम इस पित्र पक्ष में हम उनकी तृप्ति के लिए सामर्थ अनुसार जल,अन्न,वस्त्र आदि का दान कर सके।
पितृपक्ष में वैसे तो तीर्थ पर जाकर योग्य वैदिक ब्राह्मण देवता के सानिध्य में पित्र देवता की तिथि विशेष पर या सभी के लिए पूर्णिमा, एकादशी,मास संक्रान्ति, अमावस्या पर श्राद्धकर्म करना चाहिए ।
यदी इतना भी नही कर पाए तो मंदिर में ब्राह्मण को भोजन की सामग्री दान दे,जरूरत मंद व्यक्ति को उसकी आवश्यक्ता की सामग्रीभेंट करें।
भोजन के पूर्व नित्य रोटी बना कर उसपर घी व गुड़ रखकर एक रोटी गौमाता,एक रोटी कुत्ते को,एक रोटी कव्वे को व एक रोटी किसी भिक्षुक को प्रदान करे।
पीपल के वृक्ष की जड़ में काले तिल मिश्रित जल अर्पण कर पित्र गायत्री मंत्र पड़कर 7 परिक्रमा करें।
इससे निश्चत ही पित्र प्रसन्न होकर तृप्त होंगे व हमे आशीर्वाद प्रदान करेंगे।
जय श्री महाकाल
आचार्य प गौरव नारायण उपाध्याय
धर्माधिकारी तीर्थोपाध्याय उज्जैन
श्री उज्जयनि वैदिक कर्मकांड ज्योतिष अनुसंधान केंद्र उज्जैन