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श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा एवं विधि

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जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि (आधी रात) थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि

  1. इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।
  2. इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।
  3. उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें।
  4. मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।

श्रीकृष्ण का जन्म मुहूर्त


भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाना सर्वोत्तम माना गया है परन्तु पंचांग के अनुसार इस वर्ष 06 सितम्बर की रात्रि के 09 बजकर 19 मिनट से रोहिणी नक्षत्र आरम्भ होगा और 7 सितम्बर की रात्रि 10 बजकर 24 मिनट तक रहेगा अतः रोहिणी नक्षत्र केवल 06 सितम्बर की मध्यरात्री के समय रहेगा।

जन्‍माष्‍टमी की तिथि:👉 06 एवं 07 सितंबर ।

अष्टमी तिथि आरंभ👉 दिन 03 बजकर 38 मिनट से (06 सितम्बर)

अष्टमी तिथि समाप्त 👉 दिन 04 बजकर 14 मिनट तक (07 सितम्बर)

निशिथ (रात्रि) पूजा का समय 👉 (06 सितम्बर) रात 11 बजकर 47 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक।

शास्त्र के अनुसार पारण समय
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पारण समय 👉 07 सितम्बर को दिन 04:14 बजे के बाद होगा।

शास्त्र के अनुसार वैकल्पिक पारण समय
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पारण समय 👉 7 सितम्बर को प्रातः 06:02 बजे के बाद भी किया जा सकता है।

अर्थात देव पूजा, विसर्जन आदि के बाद अगले दिन सूर्योदय पर पारण किया जा सकता है।

इस वर्ष वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी 07 सितम्बर को मनाई जाएगी। 07 तारीख को व्रत रखने वालो के लिए निशिता पूजा का समय रात्रि 11:56 से 12:42 तक रहेगा।

तथा पारण का समय 08 सितंबर को प्रातः 06:41 बजे के बाद होगा।

इस वर्ष दही हाण्डी 07 सितम्बर को ही मनाई जाएगी।

जन्म कराने की विधि
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जन्म कराने के शुभ समय में भगवान के प्रकट होने की भावना करके रात्रि 11:59 से पहले खीरे के अंदर लड्डूगोपाल की मूर्ति रखकर श्री कृष्ण का जन्म कराएं जन्म के बाद लड्डूगोपाल को स्नान वस्त्रादि कराकर आरती करें। उनकी विधि विधान से पूजा करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा, और लक्ष्मी- इन सबका क्रमश: नाम जरूर लेना चाहिए।

अन्त में नीचे दिए गए मंत्र से देवकी को अर्घ्य दें।

‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।’

इसके पश्चात श्रीकृष्ण को इस मंत्र के साथ ‘पुष्पाञ्जलि’ अर्पण करें।

‘धर्माय धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम:।’

पुष्पाञ्जलि अर्पित करने के बाद नवजात श्रीकृष्ण के जातकर्म, नालच्छेदन, षष्ठीपूजन और नामकरणादि करके ‘सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसम्भवाय सोमाय नमो नम:।’ मंत्र से चन्द्रमा का पूजन करें।

फिर शंख में जल, फल, कुश, कुसुम और गन्ध डालकर दोनों घुटने जमीन में लगाएं और इस मंत्र से चन्द्रमा को अर्घ्य दें।

‘क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिनेत्रसमुद्भव।
गृहाणार्घ्यं शशांकेमं रोहिण्या सहितो मम।।

ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते।
नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम्।।’

चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद अंत में पिसे भुने हुए धनिये की पंजीरी का प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन, स्त्रोत-पाठादि करते हुए व्यतीत करें। उसके बाद दूसरे दिन पूर्वाह्न मे पुन: स्नानादि करके जिस तिथि या नक्षत्रादि के योग में व्रत किया हो, उसका अन्त होने पर पारणा करें। यदि अभीष्ट तिथि या नक्षत्रादि के समाप्त होने में विलम्ब हो तो जल पीकर पारण करें…