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भारत की संस्कृति और पहचान को बचाने में पुरातत्वविदों का अहम योगदान-मंत्री सुश्री ठाकुर

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डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान समारोह
श्री देवेन्द्र सिंह सूद को वर्ष 2020-21 और डॉ. शिवाकांत वाजपेयी को वर्ष 2021-22 का मिला सम्मान

संस्कृति, पर्यटन और धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने कहा कि भारत की संस्कृति और पहचान को बचाने में पुरातत्वविदों का अहम योगदान है। मंत्री सुश्री ठाकुर राज्य संग्रहालय सभागार में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान समारोह को संबोधित कर रही थी। मंत्री सुश्री ठाकुर ने श्री देवेन्द्र सिंह सूद को वर्ष 2020-21 और डॉ. शिवाकांत वाजपेयी को वर्ष 2021-22 के डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया। शाल, श्रीफल और प्रशस्ति पत्र से सामान के साथ दो लाख रुपए की सम्मान राशि प्रदान की गई। उन्होंने संचालनालय पुरात्व द्वारा आयोजित जश्ने-आज़ादी का सफ़रनामा प्रदर्शनी के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया। 

मंत्री सुश्री ठाकुर ने समारोह में विदिशा के शैलचित्र पर आधारित पुस्तक शैलाश्रय का विमोचन भी किया। उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावनाओं को अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित करने के लिए सम्मानित हस्तियों की तपस्या को नमन किया। उन्होंने पुरातत्व की प्रमाणिकता को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सभी पुरातत्वविदों को धन्यवाद दिया।

प्रमुख सचिव संस्कृति और पर्यटन श्री शिव शेखर शुक्ला ने कहा कि भारत की ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने का अहम कार्य करने वाले पुरातत्वविदों को सम्मानित कर संस्कृति विभाग गौरवान्वित हुआ है। उन्होंने कहा कि विरासत संरक्षण की दिशा में कामयाब होने के लिए एएसआई, संस्कृति विभाग, पुरातत्व को संयुक्त प्रयासों के साथ-साथ आमजन का भी सहयोग लेना होगा। उन्होंने धरोहर के संरक्षण की दिशा में शासन द्वारा किए जा रहे हैं प्रयासों की भी जानकारी दी।

श्री देवेन्द्र सिंह सूद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल मण्डल से उप अधीक्षण अभियंता के पद से सेवानिवृत हुए है। कंबोडिया में अंकोरवाट मंदिर, ताप्रोम मंदिर और अन्य स्मारकों के संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए कंबोडिया के शाही शासन द्वारा 2018 में “चैविलियर” और 2022 में “ऑफिसर” के सम्मान से सम्मानित किया गया है। मंदसौर में यशोवर्मन के सोंधनी स्तंभ, धार की बाघ की गुफाएं, भोजशाला और मांडू के स्मारक, मुरैना के ककनमठ मंदिर और रायसेन के सांची स्तूप जैसे अनेक स्मारकों के संरक्षण में विशेष योगदान रहा है। 

डॉ. शिवाकांत वाजपेयी वर्तमान में भारतीय पुतत्व सर्वेक्षण जबलपुर वृत्त में अधीक्षण पुरातत्वविद के पद पर सेवारत है। भीमबैठका (मध्यप्रदेश), श्रावस्ती (उत्तरप्रदेश), ढलेवां (पंजाब), राखीगढ़ी (हरियाणा), बालाथल (राजस्थान), हथनूर (महाराष्ट्र) में पुरातात्त्विक उत्खननों सर्वेक्षणों में अहम योगदान रहा। लगभग 50 से अधिक महत्त्वपूर्ण शोध पत्रों एवं 10 पुस्तकों का लेखन, प्रकाशन एवं संपादन किया जा चुका है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के विलुप्त इतिहास की कड़ियाँ जोड़ने वाले पुरास्थल डमरू (जिला बलौदाबाजार) के उत्खनन के निदेशक के तौर पर विशिष्ट पहचान है। डॉ. बाजपेयी ने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए नेपाल. ब्रिटेन, श्रीलंका तथा इटली की अकादमिक यात्राएँ एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमीनारों में सहभागिता की है।

समारोह में आयुक्त पुरातत्व श्रीमती उर्मिला शुक्ला, उपसंचालक श्री रमेश यादव सहित संबंधित अधिकारी और पुरातत्वप्रेमी उपस्थित रहें।