हिन्दू धर्मस्थल रक्षा समिति का गठन कर आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए मंदिरों की सूची तैयार कराई
अयोध्या, रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए राम मंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि देश की आजादी के साथ ही तैयार हो गई थी। इसके शिल्पी कांग्रेस के तत्कालीन कद्दावर नेता व स्वतंत्रता सेनानी दाऊ दयाल खन्ना थे।
उन्होंने हिन्दू धर्मस्थल रक्षा समिति का गठन कर शोधपूर्वक विदेशी आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए मंदिरों की सूची तैयार कराई। इसके साथ ही उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के गुलामी के प्रतीकों से मुक्ति का अभियान चलाया। इसके कारण अयोध्या में स्थित महारानी विक्टोरिया पार्क का नामकरण राजकीय तुलसी उद्यान के रूप में किया गया। यहां गोस्वामी तुलसी दास महाराज की आदमकद प्रतिमा भी स्थापित कराई गई। उन्होंने ही विहिप सुप्रीमो अशोक सिंहल को पत्र लिखकर इस अभियान में सहयोग मांगा था।
विहिप के अन्तरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय बताते हैं कि अशोक सिंहल ने रामजन्मभूमि के संघर्ष के इतिहास को देखते हुए अभियान चलाने का निर्णय लिया। अभियान की सफलता के लिए उन्होंने सबसे पहले देश भर के धर्माचार्यों को एक मंच पर लाने के लिए धर्म संसद के आयोजन की योजना बनाई। धर्म संसद से संतों को जोड़ने के लिए 1983 में पूरे देश में एकात्मता यात्रा निकाली गई। राय बताते हैं कि इस अभियान के कारण अशोक सिंहल का विभिन्न मत-संप्रदायों के धर्माचार्यों से संपर्क हुआ।
इसके बाद 7 अप्रैल 1984 को पहली बार दिल्ली में धर्म संसद का आयोजन हुआ। इसमें रामजन्मभूमि का मुद्दा उठा। धर्म संसद के ही निर्णयानुसार श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ की अध्यक्षता में किया गया। पुन: धर्म संसद के ही निर्णयानुसार 25 सितंबर 1984 को सीतामढ़ी (बिहार) से रामरथ यात्रा निकाली गई। यह यात्रा छह अक्तूबर 1984 को अयोध्या पहुंची, जहां सरयू तट पर श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प लिया गया था।
जब महंत रामचंद्र दास परमहंस ने आत्मदाह का किया ऐलान राम मंदिर आंदोलन के तहत दूसरी धर्म संसद का आयोजन 31 अक्तूबर 1985 को उडुप्पी कर्नाटक में किया गया। इस धर्म संसद में प्रस्ताव किया गया कि महाशिवरात्रि आठ मार्च 1986 तक यदि रामजन्मभूमि को मुक्त नहीं किया गया तो देशव्यापी सत्याग्रह किया जाएगा। इसी धर्म संसद में दिगम्बर अखाड़ा के तत्कालीन महंत रामचंद्र दास परमहंस ने घोषणा की थी कि यदि निर्धारित अवधि में रामजन्मभूमि का ताला नहीं खोला गया तो वह आत्मदाह कर लेंगे। इसी ऐलान के बाद 1 फरवरी 1986 को रामजन्मभूमि का ताला जिला जज, फैजाबाद के आदेश से खोला गया था।