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शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने महाराष्‍ट्र की राजनीति में किया बड़ा उलटफेर

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मुंबई
महाराष्‍ट्र की राजनीति में पिछले एक महीने से जारी शह और मात के खेल में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने शनिवार को बड़ा उलटफेर करते हुए अपनी पार्टी को तोड़ दिया। अजित पवार ने बीजेपी को समर्थन दे दिया और डेप्‍युटी सीएम बन गए। भतीजे के इस दांव से शरद पवार और उनका परिवार ही नहीं, राजनीतिक जानकार भी हैरान रह गए। परिवार और पार्टी की इस टूट पर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा है कि जिंदगी में अब किसका भरोसा करें, इस तरह उन्हें कभी धोखा नहीं मिला था। लेकिन यह संयोग ही है कि आज से ठीक 41 साल पहले 1978 में शरद पवार भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए अजित पवार वाली राह पर चले थे। उन्होंने तब अपनी पार्टी तोड़ी थी।

41 साल पुरानी वह कहानी, जब शरद ने तोड़ी थी पार्टी
देश में इमर्जेंसी लगाने के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दिग्‍गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हार मिली और जनता पार्टी की सरकार बनी थी। महाराष्‍ट्र में भी कांग्रेस पार्टी को कई सीटों से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शंकर राव चव्‍हाण ने हार की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया। वसंतदादा पाटिल उनकी जगह महाराष्‍ट्र के सीएम बने। बाद में कांग्रेस में टूट हो गई और पार्टी कांग्रेस (U) तथा कांग्रेस (I) में बंट गई।

शरद पवार के गुरु यशवंत राव कांग्रेस (U) में शामिल
इस दौरान शरद पवार के गुरु यशवंत राव पाटिल कांग्रेस (U) में शामिल हो गए। शरद पवार भी कांग्रेस (U) में शामिल हो गए। वर्ष 1978 में महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस के दोनों धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। बाद में जनता पार्टी को सत्‍ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस के दोनों धड़ों ने एक साथ म‍िलकर सरकार बनाई। वसंतदादा पाटिल सीएम बने रहे। इस सरकार में शरद पवार उद्योग और श्रम मंत्री बने।

ऐसा कहा जाता है कि जुलाई 1978 में शरद पवार ने अपने गुरु के इशारे पर कांग्रेस (U) से खुद को अलग कर लिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई। मात्र 38 साल की उम्र में शरद पवार राज्‍य के सबसे युवा मुख्‍यमंत्री बने। बाद में यशवंत राव पाटिल भी शरद पवार की पार्टी में शामिल हो गए। इंदिरा गांधी के दोबारा सत्‍ता में आने के बाद फरवरी 1980 में पवार के नेतृत्‍व वाली प्रोग्रेसिव डेमोक्रैटिक फ्रंट सरकार गिर गई।

अजित पवार ने चाचा के नेतृत्‍व वाली एनसीपी को तोड़ा
अब अजित पवार ने भी अपने चाचा और गुरु शरद पवार के नेतृत्‍व वाली एनसीपी को तोड़ा है और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है। बताया जा रहा है कि एनसीपी के कुल 54 विधायकों में से अजित पवार के साथ 35 विधायक हैं। राजनीतिक गलियारे में चर्चा इस बात की भी गरम है कि शरद पवार ने अपने भतीजे के साथ मिलकर पर्दे के पीछे से खेल किया है। हालांकि खुद शरद पवार ने इसका खंडन किया है।

शरद पवार ने ट्वीट कर कहा, ‘अजित पवार का बीजेपी को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने का फैसला उनका निजी फैसला है, नैशनलिस्‍ट कांग्रेस पार्टी का इससे कोई संबंध नहीं है। हम आधिकारिक रूप से यह कहना चाहते हैं कि हम उनके (अजित पवार) इस फैसले का न तो समर्थन करते हैं और न ही सहमति देते हैं।’ यही नहीं शरद पवार शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर प्रेस कॉन्‍फ्रेंस भी करने वाले हैं। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अपने वाट्सऐप स्‍टेटस पर लिखा है, ‘पार्टी और परिवार में बंटवारा।’ पार्टी में उपजे संकट से निपटने के लिए शरद पवार ने एनसीपी की आपात बैठक बुलाई है। उधर, अजित पवार ने कहा है कि उन्‍होंने अपने चाचा शरद पवार को पूरे घटनाक्रम से पहले ही अवगत करा दिया था।

‘शरद पवार के पास अब दो विकल्‍प बचे’
विश्‍लेषकों के मुताबिक शरद पवार के पास अब दो विकल्‍प बचे हैं। शरद पवार या तो अपने गुरु की तरह से भतीजे के साथ जा सकते हैं। ऐसा करने पर उनकी बेटी सुप्रिया सूले को केंद्र सरकार में मंत्री पद मिल सकता है। आरपीआई के नेता रामदास आठवले ने भी शरद पवार को यही सुझाव दिया है। उधर, शरद पवार के समक्ष दूसरा विकल्‍प यह है कि वह अपने विधायकों को मनाएं ताकि बीजेपी सरकार को विधानसभा में बहुमत नहीं मिले और भतीजे को झुकने के लिए मजबूर किया जा सके। अब शरद पवार को इन विकल्‍पों में से एक को चुनना होगा।