नवरात्रि का नौवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित है और इसे बहुत शुभ माना जाता है और इसे महा नवमी के रूप में मनाया जाता है।
सिद्धिदात्री शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, सिद्धि का अर्थ है ध्यान करने की क्षमता और धात्री का अर्थ है दाता। यह देवी सभी सिद्धियों को देने वाली है इसलिए भक्तजन इनके आशीर्वाद की कामना करते है। इस रूप में, देवी दुर्गा अज्ञान को दूर करती हैं और दिव्य ज्ञान का आशीर्वाद देती हैं।
मां सिद्धिदात्री और महत्व
मां सिद्धिदात्री के चार हाथ हैं और इनके प्रत्येक हाथ में एक चक्र, शंख, गदा और कमल सुशाेभित है।मां सिद्धिदात्री के बारे में कहा गया है अर्णिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वाशित्व आठ सिद्धियां इनमें विराजमान होती है। देवी की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवीमय हो गया है। भगवान शिव को अर्धनारीश्वर के नाम से जाना जाता है क्योंकि भगवान शिव का एक पक्ष देवी सिद्धिदात्री का है। शास्त्रों के अनुसार शिव ने देवी सिद्धिदात्री की पूजा की और सभी सिद्धियों को प्राप्त किया।इस देवी की साधना करने से अलौकिक एवं पारलौकिक कामनाओं की पूर्ति होती है।
मां सिद्धिदात्री पूजन विधि
महा नवमी के दिन भक्तों को शीघ्र स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन भक्त हवन करते हैं। कलश के पास जो देवी की मूर्ति स्थापित है उसके समक्ष पान, सुपारी फूल आदि चढ़ाने के बाद घी का दीपक जलाएं। मां सिद्धिदात्री के मंत्रों का जाप कर आरती करें। महा नवमी को शाम को भी आरती के बाद मां को भोग लगाया जाता है। कुछ भक्त इस दिन व्रत रखते हैं। मां दुर्गा के नवें रूप सिद्धिदात्री की आराधना से केतु के दोष दूर होते हैं।वास्तु दोषों के साथ ही जीवन की हर बाधा से मुक्ति मिलती है। चमेली, बेला का पुष्प मां को अत्यंत प्रिय है। नवमी के दिन तिल का भोग लगाने से अनहोनी की आशंका खत्म होती है।