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गोवर्धन पूजा का महत्व, इसकी पौराणिक कथा

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गोवर्धन पूजा , जिसे अन्नकूट भी कहा जाता है. इसे दिवाली के दूसरे दिन याने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है. इसे है अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना के साथ गौमाता की पूजा और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा भी है. इस पूजा का इतना धार्मिक महत्व है कि दिवाली के अगले दिन लोग इसका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा भी बेहद प्रचलित है. यह कथा “गोवर्धन लीला” के नाम से जानी जाती है, जिसे “भागवत पुराण” में विस्तार से वर्णित किया गया है.

कथा के अनुसार, गोकुल के वासिनों ने वर्षों तक भगवान कृष्ण को गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) की पूजा की थी, और उन्हें इस पर्वत के पूजन का तात्पर्य गोमाता या गौ माता से था, जिन्हें वहां भगवानी कहकर पूजा जाता था.

एक बार, गोकुल में व्रजवासियों ने भगवान इंद्र की पूजा करने का निश्चय किया था, क्योंकि ग्राम्य लोगों का विश्वास था कि इंद्रदेव ही वर्षा का कारण होते हैं और उनकी पूजा से ही उन्हें वर्षा प्राप्त होती है.

भगवान श्रीकृष्ण ने यह देखा और उन्होंने गोकुलवासियों को इस विशेष पूजा की आवश्यकता नहीं होने का उपदेश दिया. उन्होंने गिरिराज पर्वत की पूजा का महत्व बताया और उन्होंने कहा कि गौ माता और गिरिराज की पूजा करने से उन्हें सर्वत्र कल्याण मिलता है.

भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथों से उठा लिया और गोकुल के वासिनों को कहा कि वे इस पर्वत की पूजा करें. गोकुलवासी ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और गिरिराज पर्वत की बड़ी श्रद्धा भाव से पूजा की.

इस पर्वत पूजा के परिणामस्वरूप, इंद्रदेव नाराज हो गए और उन्होंने भगवान कृष्ण पर वर्षा करने वाले अदृश्य वृष्टि की शक्ति बना दी. भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाने से गौ माता और गिरिराज पर्वत की पूजा का महत्व साबित किया और व्रजवासियों को यह शिक्षा दी कि गौ माता की पूजा से ही सभी कल्याण होता है.

इस घटना को याद करते हुए हर साल गोवर्धन पूजा मनाई जाती है, जिसमें गिरिराज पर्वत की पूजा की जाती है और लोग गौ माता की पूजा करते हैं.