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रामलला गर्भगृह में विराजमान, जानिए कैसे मूर्ति में डाली जाती है जान? किन-किन बातों का रखना चाहिए ध्यान

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अयोध्या में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया संपन्न हो गई है. इस अनुष्ठान के बाद राम लला की आरती भी हो चुकी है.

अयोध्या में 16 जनवरी से ही रामलला की स्थापना का कार्यक्रम जारी था. अयोध्या में इस खास मौके पर पीएम मोदी समेत देश-विदेश से तमाम वीवीआईपी अतिथि भी शामिल हुए.रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनके तस्वीर भी सामने आई है, जिसमें रामलला की छटा बेहद दिव्य दिखाई दे रही है. प्राण प्रतिष्ठा नाम का ये शब्द हम सबने सुना होगा औप मंदिर में भगवान को स्थापित करने की ये सबसे जरूरी प्रक्रिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा आखिर क्या होती है? तो आइए आपको बताते हैं कि मंदिर में भगवान की स्थापना करने के लिए प्राण प्रतिष्ठा क्यों होती है.मत्स्य पुराण, वामन पुराण और नारद पुराण में प्राण प्रतिष्ठा के महत्व के बारे में बताया गया है. हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है. प्राण प्रतिष्ठा क्यों जरूरी है, इसे जानने पहले इसके अर्थ को जानना जरूरी है. प्राण शब्द का अर्थ है जीवन शक्ति और प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना. इस तरह सेप्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ है जीवन शक्ति की स्थापना करना. प्राण प्रतिष्ठा के बाद से देवी या देवता की मूर्ती को पूजना जरूरी होता है. माना जाता है कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद अगर देवी या देवती की स्थापित मूर्ति की पूजा नहीं होती तो उसकी ऊर्जा क्षीण होने लगती है.दरअसल, ये एक अनुष्ठान होता है, जिसके जरिए मंदिर में देवी या देवता की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया जाता है. इस पूरे अनुष्ठान के दौरान वैदिक मंत्रों के पाठ के बीच मूर्ति को पहली बार स्थापित किया जाता है.

इस अनुष्ठान से पहले मूर्ति को सम्मान के साथ लाया जाता है. मूर्ति की आंखों में पट्टी बंधी होती है.अतिथि की तरह स्वागत किया जाता है. फिर उसे सुगंधित चीजों का लेप लगाकर दूध से नहलाते हैं और साफ करके प्राण प्रतिष्ठा योग्य बनाया जाता है. इसके बाद की प्रक्रिया में मूर्ति को गर्भ गृह में रखकर पूजन शुरू होता है. इस दौरान मूर्ति का मुख पूर्व दिशा की ओर रहता है. सही स्थान पर इसे स्थापित करने के बाद मंत्रोच्चार से मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है.

पूजा करने के बाद सबसे पहले मूर्ति की आंख खोली जाती है, जिसके बाद आंखों में शहद लगाया जाता है.ये प्रक्रिया पूरी होने के बाद फिर मंदिर में उस देवता की मूर्ति की पूजा अर्चना होती है. प्राण प्रतिष्ठा के बाद हमें मूर्ति में दैवीय अहसास सा महसूस होता है.

शास्त्रों के अनुसार, मंत्रों के प्रभाव से मूर्ति के नेत्रों में ऊर्जा आती है. उससे किसी तरह की हानि न हो इसके लिए प्रतिबिंब यानी शीशे का दर्शन करवाया जाता है.नेत्रों से जो तेज निकलता है, उसकी वजह से आईना टूट जाता है.

शास्त्रों के मुताबिक, जब एक बार किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने पर इसे किसी रख-रखाव की आवश्यकता नहीं पड़ती. ये हमेशा के लिए रहती है. हालांकि, इसकी पूजा अर्चना होती रहनी चाहिए.