Home Uncategorized माता चंद्रघंटा की कहानी और पूजा का क्या है महत्व

माता चंद्रघंटा की कहानी और पूजा का क्या है महत्व

63

मां चंद्रघंटा दुर्गा का तीसरा स्वरूप हैं. मां युद्ध मुद्रा में सिंह पर विराजमान हैं. मां चंद्रघंटा के हाथों में त्रिशूल, धनुष, गदा और तलवार है. इनके माथे पर घंटे के आकार में अर्द्ध चंद्र विराजमान है, इसी वजह से ये चंद्रघंटा कहलाती हैं|

मां चंद्रघंटा का पसंदीदा रंग भूरा है|

मां चंद्रघंटा के स्वरूप की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राक्षस महिषासुर ने अपनी शक्तियों के घमंड में देव लोक पर आक्रमण कर दिया। घमासान युद्ध में जब देवता हारने लगे तो वह बारी-बारी से त्रिदेवों के पास मदद के लिए पहुंचे। इनकी व्यथा सुनकर मां आदिशक्ति ने अपने चंद्रघंटा स्वरूप को प्रकट किया। इस स्वरूप को भगवान विष्णु ने अपना चक्र, भगवान शिव ने त्रिशूल, देवराज इंद्र ने घंटा, सूर्य ने तेज तलवार और सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता को कई अस्त्र शस्त्र प्रदान किए, जिसके बाद माता चंद्रघंटा ने राक्षस का वध कर दिया।

देवी पुराण के अनुसार बाद में यही देवी राजा हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्मी, जब कालांतर में भगवान अर्धनारीश्वर शिव इनसे शादी करने पहुंचे तो वे बालों में कई सांप, भूत, ऋषि, भूत, अघोरी और तपस्वियों की एक अजीब शादी के जुलूस के साथ भयानक रूप हिमालय राज के महल पहुंचे तो पार्वती की मां मैना देवी को शिव का ऐसा वेश दिखा कि वे बेहोश हो गईं, तब पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रूप धारण किया, जिसके बाद मैना देवी ने दोनों की शादी की स्वीकृति दी और दोनों का विवाह हुआ।

मां चंद्रघंटा के मंत्र
1. सरल मंत्र : ॐ एं ह्रीं क्लीं

2. माता चंद्रघंटा का उपासना मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

महामंत्र
3. या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
ये मां का महामंत्र है जिसे पूजा पाठ के दौरान जपना होता है।
4. मां चंद्रघंटा का बीज मंत्र है- ‘ऐं श्रीं शक्तयै नम:’

माना जाता है कि भक्तों को इनकी पूजा करते समय इनके मंत्र का जाप कम से कम 11 बार करना चाहिए।

मां की अराधना उं देवी चंद्रघंटायै नम: का जप करके की जाती है। माता चंद्रघंटा को सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप, पुष्प अर्पित करें। आप मां को दूध से बनी हुई मिठाई का भोग भी लगा सकती हैं। नवरात्रि के हर दिन नियम से दुर्गा चालीस और दुर्गा आरती करें।