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“हमारे मंदिर हमारी धरोहर”

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भारत में मंदिर न केवल पूजा-अर्चना के स्थल होते हैं, बल्कि ये हमारे इतिहास, संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक होते हैं। ये वास्तुकला, मूर्तिकला, और पौराणिक कथाओं का संग्रह होते हैं, जो हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और उनकी कलात्मक प्रतिभा की याद दिलाते हैं।

मंदिरों की धरोहर को संजोना और सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। ये स्थान हमें हमारे इतिहास से जोड़ते हैं और हमें हमारी सांस्कृतिक पहचान का एहसास कराते हैं। मंदिरों की देखभाल और संरक्षण करके हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक समृद्ध विरासत छोड़ सकते हैं।

इस श्रेड़ी में आज हम जानेंगे भोपाल के भोजपुर मंदिर के बारे में |

भोपाल के पास स्थित भोजपुर मंदिर, जिसे भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है, भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में धार के परमार वंश के राजा भोज द्वारा किया गया था। आइए इसके इतिहास और विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा करें:

इतिहास:

  1. निर्माण काल: भोजपुर मंदिर का निर्माण राजा भोज (1010-1055 ईस्वी) द्वारा किया गया था। राजा भोज एक महान योद्धा, विद्वान और वास्तुकार थे। उन्होंने इस मंदिर का निर्माण भगवान शिव के सम्मान में कराया था।
  2. अधूरा निर्माण: भोजपुर मंदिर अधूरा है। इस मंदिर का निर्माण कार्य कुछ कारणों से पूरा नहीं हो सका। निर्माण कार्य की समाप्ति के सही कारण अज्ञात हैं, लेकिन यह भी माना जाता है कि राजनीतिक अस्थिरता या वित्तीय समस्याओं के कारण निर्माण कार्य रुक गया था।
  3. स्थापत्य कला: भोजपुर मंदिर की स्थापत्य कला अद्वितीय है। मंदिर का मुख्य शिखर (गर्भगृह) एक विशाल पत्थर के ब्लॉक से बना है और इसका शिखर अधूरा है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग, भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है, जिसकी ऊंचाई लगभग 7.5 फीट और व्यास 17.8 फीट है।

विशेषताएँ:

  1. शिवलिंग: भोजपुर मंदिर का शिवलिंग बहुत विशाल है और यह एक ही पत्थर से बना हुआ है। यह शिवलिंग अपने आकार और निर्माण की गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है।
  2. मंदिर की संरचना: मंदिर का गर्भगृह एक विशाल वर्गाकार कक्ष है, जिसके चारों ओर स्तंभ हैं। गर्भगृह के ऊपर का शिखर अधूरा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो सका।
  3. शिलालेख: मंदिर की दीवारों पर कई शिलालेख और वास्तु योजना खुदी हुई हैं, जो उस समय की स्थापत्य कला और तकनीक को दर्शाते हैं। ये शिलालेख भारतीय स्थापत्य के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं।

धार्मिक महत्व:

भोजपुर मंदिर न केवल स्थापत्य कला के लिए, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। शिवभक्तों के लिए यह मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहाँ हर साल महाशिवरात्रि के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।

भोजपुर मंदिर का अधूरा निर्माण इसे और भी रोचक बनाता है, और यह मंदिर भारतीय इतिहास, संस्कृति और धार्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।