बरवासिन गांव में किसानों ने बयां किया दर्द।
रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करने दूसरे राज्यों में जा रहे ग्रामीण
awdhesh dandotia
मुरैना। बाढ़ से बर्बाद हुए किसानों को दो महीने बाद भी मुआवजा नहीं मिला है। घर में चूल्हा जलाने के लिए उन्हें राशन उधार खरीदना पड़ रहा है जिससे वह अब कर्जदार हो गए हैं। फोटो खिंचवाकर बाढ़ पीडि़तों का इमदाद देने का दावा कर रही स्वंयसेवी-समाजसेवी संगठन भी अब बाढ़ प्रभावित इलाकों में झांकने तक नहीं जा रहे हैं। किसानों को मुआवजा कब तक मिलेगा इसकी कोई उम्मीद भी अभी तक नजर नहीं आ रही।
सितंबर महीने में आई बाढ़ का पानी बरवासिन गांव में भर गया था। ग्रामीणों के घरों में पानी भरा तो वह गांव खाली करके सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए लेकिन गृह-गृहस्थी के सामान को बचा नहीं सके। खेतों में खड़ी फसल बाढ़ से नष्ट हो गई तो मवेशी भी इस बाढ़ में बह गए। आंसू बहा रहे किसानों को प्रशासन ने तात्कालिक सहायता के रूप में राशन उपलब्ध करा दिया और वादा कर दिया कि जल्द ही उन्हें नष्ट फसल व पशुधन का मुआवजा मिलेगा जिससे वह फिर जिंदगी शुरूआत कर सकेंगे। लेकिन ग्रामीणों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। इसलिए कुछ ग्रामीण पेट भरने के लिए उधार राशन खरीद रहे हैं तो कुछ ग्रामीण रोजी-रोटी कमाने के लिए दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए निकल गए हैं।
सर्वे के बाद नहीं आई कोई प्रशासनिक टीम :
बरवासिन गांव में रह रही महिला रामसनेही ने बताया कि बाढ़ के तत्काल बाद हमें प्रशासन ने राशन उपलब्ध कराया। उसके बाद सर्वे कराया गया और कहा गया था कि जल्द ही हमें मुआवजा मिल जाएगा लेकिन किसी भी प्रकार का मुआवजा हमें नहीं मिला है। इस कारण परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। रामसनेही ने बताया कि उसके पति बाहर जाकर मजदूरी कर रहे हैं वो थोडा-बहुत जो कमाकर लाते हैं उससे जैसे-तैसे गुजारा हो रहा है।
मवेशी बह गए, फसल भी हो गई नष्ट :
बरवासिन गांव में रहने वाली रेनू ने बताया कि जब बाढ़ आई थी उस समय हमारे मवेशी इस बाढ़ में बह गए। दस वीघा जमीन पर खड़ी फसल भी नष्ट हो गई। लेकिन हमें किसी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला है। पेट भरने के लिए अब राशन उधार खरीदना पड़ रहा है। जिससे कर्ज हो गया है। लेकिन कोई भी अधिकारी अब यहां झांकने तक नहीं आ रहा।
कोई संगठन नहीं दे रहा इमदाद :
गांव में रहने वाले सुल्तान ने बताया कि गांव में बाढ़ आई तब अधिकारी भी बार-बार गांव में आ रहे थे तो समाजसेवी संगठन भी यहां सहायता देने आए थे। उन्होंने थोडा बहुत राशन ग्रामीणों को दिया और फोटो खिंचवाए थे। लेकिन अब न तो कोई अधिकारी आ रहे हैं और नही कोई सामाजिक संगठन। हमें उम्मीद थी कि सर्वे के बाद मुआवजा मिलेगा जिससे हालातों में सुधार हो जाएगा लेकिन मुआवजा भी नहीं मिला है। इसलिए बडी मुश्किल से गुजारा हो रहा है।
अस्थाई रहवास बनाकर कर रहे गुजारा :
बाढ़ में ग्रामीणों के कच्चे मकान बह गए थे तो कई ग्रामीणों के पक्के मकान धराशायी हो गई। बाढ़ का पानी निकलने के बाद गांव में पहुुंचे ग्रामीणों ने जैसे-तैसे जगह को साफ कर अब वहां रहने के लिए झोंपडी डाल ली है वहीं किसी ने तिरपाल लगा ली है और इन्हीं अस्थाई रहवास में वह दिन काट रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अब कोई अधिकारी भी सुध नहीं ले रहा। ग्रामीणों का कहना था कि पेयजल के लिए गांव में कोई हेंडपंप नहीं है। केवल कुएं हैं। इन कुओं में प्रशासन ने बाढ़ के बाद दवा डलवाई थी लेकिन अब ऐसा कोई इंतजाम नहीं किया है। हेंडपंप भी नहीं लगवाए जा रहे इस कारण कुओं से ही पेयजल आपूर्ति करनी पड़ रही है।